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Saturday, December 5, 2009

रोटी सुवाद भोत ही आज

राजस्थानी कहाणी
रामस्वरूप किसान रो जलम 14 अगस्त, 1952 नै हनुमानगढ़ जिलै रै परलीका गांव में हुयो। राजस्थानी रा सिमरथ लिखारा। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली समेत मोकळा पुरस्कारां रा विजेता। कहाणियां अर कवितावां री आठ पोथ्यां छप चुकी। आपरी रचनावां रा अंग्रेजी, हिन्दी, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मलयालम अर मराठी भासावां में अनुवाद भी हुया है। आपरी रचनावां में किसानी जीवन रा सुख-दु:ख घणी बारीकी सूं उकेरीज्या है। आज बांचो आं री आ सांतरी-सी कहाणी।

रोटी सुवाद भोत ही आज

उतरतो आसोज। लागती काती। दिन में तावड़ो। रात नै ठारी। झांझरकै, खेस में नींद कोनी आवै। रिजाई चइजै। पण बै रिजाई रो के करै। इण बगत रिजाई तो पळगोड नै चइजै। कै फेर बाणियैं-बकाल अर कै किणी अफसर एलकार नै। बै तो इण मीठी ठारी रो जागता रैय'र मजो लेवै। अर जागता ई नीं, एक मीठो सफर करता सुवाद लेवै। घर सूं खेत तांईं रो सफर।
तारियो ऊगग्यो। अंधारै झांझरकै नै सांगोपांग उजास मिल्यो है। आकास-गंगा इजगर री भांत पसवाड़ो फोर लियो है। मिंदर अर मसीत मून है अजे। इक्को-दुक्को बूढो-बडेरो धांसतो सुणीज्यै। बाकी गांव घोड़ा बेच'र सूत्यो पड़्यो है। पण बै दोनूं भाई तो खड़्या हुग्या। घड़ै सूं पाणी लेय'र मूं धोवण लागग्या। एक जणै आग बाळ'र चिलम भरली। दूजो ऊंटां रै ठाणां में हाथ मारण लागग्यो। दोनूं ठाण खाली है। फगत गूणै रा करचा पड़्या है। उण नै तसल्ली हुयी, रात रा पूरा चर्योड़ा है ऊंट। क्यूंकै रात दोनूं ठाण ऊपर तांईं भर'र सोया हा दोनूं भाई। खाली ठाण देख'र जी सोरो हुयो। सोच्यो चारू तो खूब है ऊंट।... अर चारू है जदी तो इत्ता ऊंडा हळ खींचै। नीं तो हळाई में ई बैठज्यै। कै फेर पाळट छोड'र जांटी तळै ठरड़ लेयज्यै हाळी नै। उण दोनूं ऊंटां नै थुथकारो घाल्यो। सोचण लाग्यो-
ऊंट तो के है, चीज है। तीखो नक्सो, लाँबा डील, घड़ै मान थूई, बांथ में मावै इसा पींडा, चौड़ी बगलां, छोटा एडर, छोटी पोड़ी अर पूंछड़्यां में बंट। दोनूं ई एकसा। एक नै लुकोय'र दूजै नै काढो, पिछाण नीं सकै। क्यूंकै मा जाया है। घरू सां'ड रा। इणी रील साथै बो अंधेरै में फोरा-सारी करै हो। इतराक में दूजो भाई चिलम खींचतो आयग्यो। अर उण नै चिलम पकड़ांवतो बोल्यो-
'लै, तू चिलम खींच अर म्हैं बोरा लादूं ऊंटां पर।'
उण एक ऊंट पर पाणी रा घड़ा घाल्या अर दूजै पर नीरै रो बोरो। भळै दोनूं भाई एक पर चढग्या अर दूजै नै पकड़ लियो लारै।
धर कूंचा धर मजलां खेत नै बहीर हुग्या। ऊंटां री उगाळी री गर्रक-गर्रक अर घड़ां री डबूं-डबूं मिल'र एक निरवाळै ई संगीत रो आनंद देवै ही। इणी धीमै संगीत में दोनूं भाईयां री बंतळ चालै ही-
'तीनेक दिनां री रैयी है पाड़ तो। भळै सिट्टी तोड़ण लागस्यां।'
'हां, झोला चालग्या। सिट्टी तो आयगी समझो।'
'आलीड़ो तो सांगोपांग पड़्यो है। हाड़ती तो बीजीज ई ज्यासी।'
'हाड़ी तो बीजीज्यै ई गी। पंदरा दिन हुग्या पाड़ करता नै। डगरां रा आसण फाटग्या। जे आपणी नीं बीजीजी तो किणी री ई नी बीजीज्यै। आपां तो पाड़ सूं सीरै बरगी कंवळी करदी हाड़ी नै। अर अब तो ठारी ई आयगी। आल जावैगी कठै। ऊपरनै ई आसी अब तो आलीड़ो।'
इण भांत गुरबत चालती रैयी। बातां-बातां में खेत आयग्यो। ऊंटां नै बैठाय'र बोरा उतारया। बां रै आगै नीरो मेल्यो। एक भाई आग बाळ'र चा टेक दी। दूजो ऊंटां पर तांगड़ कसण लगग्यो। इतराक में कीं गुधळको-सो हुयग्यो। दोनूं भाईयां चा पीय'र हळ जोड़ दिया। दिनूग्यै नै दो हळाई भर दी। क्यूं कै ठंड रो टेम अर चालणा ऊंट। रास तो दूर, टिचकारी ई नीं सैवै।
जद छोटियै भाई री बीनणी भातो लेय'र पूगी, बां डेढ बीघै नै पाणी प्या दियो। भातै नै इत्ती पाड़ माइनो राखै। अर बा ई जीरै बरगी नान्हीं। पण हाथी बरगा ऊंट अर छ:-छ: फुट लांबा गबरू हाळी ई तो माइनो राखै। बां रो डाण कसूतो पड़ै। चालै जद घूड़ ई उछळती बगै।
बीनणी डेरै पूगी अर बां नेकस काढदी। ऊंट डेरै कानी बीखां हो लिया। अर नीरै पर जाय'र गदा-गद बैठग्या। आगली गोडी डाळतां ई नीरै पर चबर मारी। पूरा बैठ्या इत्तै नै तो एक-एक गब्बो गिटग्या। दोनूं भाई ई हाथ-मूं धोय'र रोटियां पर जमग्या। कांसी रै दो कचोळां में घी सूं गळगच दो-दो बाजरी रा रोट। बां कुलडिय़ै री गिच्ची पकड़ी अर आप-आप रै रोटां पर गुवार-पळियां रो तीवण ओज लियो। बां रै गालां में गुरसली-सी बोलण लागगी। तीवण-रोटी खाय'र बां दही आळै कुलडिय़ै रो कान पकड़्यो अर आप कानी खींच लियो। अब बाजरी रा रोट दही में चूरै अर सबड़कै। बां सबड़कां रो संगीत-सो बणा दियो। बै टेढा चालण लागग्या। एक जणो आधो रोट तोड़ै अर चूरल्यै। दूजो लारै बच्योडै़ नै रगड़ ल्यै। क्यूंकै काम करणियै नै भूख कसूती लागै। काम ई तो मांगै रोटी। पण आज दोनूं भाईयां री सभाऊ ई जिद्द हुगी। बै इणी भांत टेढा चालता रैया। अर जद न्यातणो खाली हुग्यो तो अचाणचक एक भाई झिझक'र बोल्यो-
'अररऽऽ... मत्तू काको?'
'अरैऽऽ... भूलग्या यार! रोटी सुवाद भोत ही आज। बो तो लाई याद ई कोनी रैयो।' दूजो अफसोस करतो बोल्यो।
बीनणी नै हांसी आयगी। जकी बां रै कन्नै ई पूठ फोरया बैठी ही।
इतराक में दूर स्यूं मत्तू आंवतो दीख्यो। बो आंरे सींवाडै़ ई एक खेत में रोजीना बकरी चरावै। अर आं री ऊबरी-सूबरी खावै। पण आज? आखै दिन भूखो रैणो पड़सी डोकरै नै।
खुरड़ा घींसतो-घींसतो मत्तू डेरै आयग्यो। जीम्योड़ी जगां पर कागला चुग्गो-पाणी करै हा। एक कागली आपरै कागलियां नै चून देवै ही। डेरै कांव-कांव हुवै ही। बीनणी भातो सामटै ही। बै दोनूं भाई चिलम खींचै हा।
मत्तू लाठी रै ठेगै बैठतै थकां कागलां नै उडाया-
'अठै के करो हो कागलो! आ जगां तो मेरी है।'
बीनणी नै भळै हांसी आयगी।
दोनूं भाई चिलम पींवता रैया। पण बां रै चै'रै पर उदासी ही। बै कीं नीं बोल सक्या। अर जद हळ जोड़ण खातर खड़्या हुवण लाग्या तो मत्तू अबोलो नीं रैय सक्यो। बां री आंख्या में झांकतो बोल्यो-'छोरो, आज रोजीनाळी-सी कोनी करो के?'

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केंद्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली रो भाषा अनुवाद पुरस्कार लेवंता रामस्वरूप किसान. (२००३)